पुस्तक चर्चाः


मैं जहाँ हूँ साहित्य जगत के लिए एक उपहार से कम नहीं है
     
छोटी बहर के बड़े मशहूर ग़ज़लकार विज्ञान व्रत को पढ़ना याने एक पल में दुनिया देखने जैसा है । हाल ही में आया उनका ग़ज़ल संग्रह मैं जहाँ हूँ प्रकाशित हुआ । ये मेरे प्रति उनका अनुराग है कि जिस दिन दिल्ली में इस संग्रह का लोकार्पण हुआ उसी दिन इस संग्रह की प्रति डाक से मुझे मिली । विज्ञान जी की ग़ज़ले सरल और सहज भाषा लिए होती है यह निर्विवादित सत्य है । हिंदी में ग़ज़लकारों की भीड़ में उनका अपना स्थान है उनके अपने मुहावरे है, अपनी भाषा है और साथ में होती है व्यंजना, जो ग़ज़ल को गहराई देती है । यहीं कारण होता है कि उनकी ग़ज़लें हमसे सीधे संवाद करती नज़र आती है । वे कहते है-
जिन का तू दीवाना हो ।
ऐसे कुछ दीवाने रख ।।

मुझ से मिलने-जुलने के ।
अपने पास बहाने रख ।।

एक पीड़ा जिसका अनुभव गॉव से शहर आया हर कोई व्यक्ति करता है उस पर वे कहते है-

                               गाँवों में जो घर होता है ।
                               शहरों में नम्बर होता है ।।

फ़कीराना अंदाज में उनके शेर कुछ इस तरह से अन्तर्दृष्टि लिए है कि उनके मायने हर बार अलग नज़र आते है-
जब तक उनके पास रहा ।
मैं हूँ ये अहसास रहा ।।

दुनियादारी जी कर भी ।
मुझमें इक संन्यास रहा ।।

वर्तनान राजनैतिक परिदृष्य और संवेदना की कसौटी पर उनकी ग़ज़लें दर्द को लफ्ज़ देती है-

रोज़ नयी इक चाल सियासी ।
प्रश्न हुआ रोटी का बासी ।।

बस्ती-बस्ती भीड़ बढ़ी ।
लेकिन तनहा शहर हुआ है ।।

विज्ञान जी को पढ़ना याने अपने दिल की बात उनकी गज़लों में आ जाने जैसा है, वे कहते है-

औरों से क्यूँ कहलाते हो ।
खुद ही अपनी बात कहो ना ।।

क्या सब कुछ हम ही बतलाएँ ।
तुम भी तो कुछ याद करों ।।

सरल शब्द और गहन अर्थों से भरी ,छोटी लेकिन वजनदार गज़ल़ कहने वालों के बिच उस्ताद का दर्ज को प्राप्त विज्ञान व्रत जी का यह संग्रह मैं जहाँ हूँ साहित्य जगत के लिए एक उपहार से कम नहीं है । हालाकि मैं उनकी ग़ज़लों का तब से पाठक और प्रशंसक रहा हूँ, जब साहित्य के मेरा कोई वास्ता नहीं था । मैं ईश्वर से यहीं कामना करता हूँ कि विज्ञान जी की क़लम में शब्दों का प्रवाह बना रहे और हम जैसे उस प्रवाह में सतत गोते लगाते रहे...।
कृति-
मैं जहाँ हूँ
ग़ज़लकार –
विज्ञान व्रत, एन-138, सेक्टर-25, नोएडा 201301
प्रकाशक -अयन प्रकाशन ,नई दिल्ली
पृष्ठ –104
मूल्य –200/- रुपये
समीक्षक-
संदीप सृजन
संपादक – शब्द प्रवाह
प्रबंध संपादक- शाश्वत सृजन
ए-99 वी. डी. मार्केट, उज्जैन 456006
मोबाइल -09926061800

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