एक सार्थक प्रयास - शब्दो के पुल (समीक्षा)


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@कृति- शब्दो के पुल
@कवयित्री - डॉ सारिका मुकेश(वेल्लौर) @प्रकाशन - जाहृवी प्रकाशन दिल्ली
@मूल्य -₹ 200/-

हिंदी कविता जगत सदा से उदार रहा है,  यही कारण है की उर्दू ,फारसी की गजल, अंग्रेजी की अतुकांत कविता, और जापानी कविता का छंद हाइकु अपनी अहम् जगह बना पाये है । बाहरी शिल्प को अपनी भाषा और भाव में बांधना मुश्किल काम है, पर कई कलमकार इसे अपना रहे और अपनी कलम का अपने चिंतन का लोहा मनवा रहे है ।

मेरे सामने रखी डॉ सारिका मुकेश की कृति "शब्दो के पुल " सच में एक बङा पुल बनकर प्रकाशित हुई है जापानी छंद और हिंदी कथ्य के बीच में , छंद का विधान 5-7-5   वर्ण  का है और मात्र 17 अक्षरों मे अपनी बात पूरी करना इसकी सबसे पहली शर्त है जिसे डॉ सारिका मुकेश ने बड़ी सहजता से पूरा किया है । 308 हाइकु इस कृति में लिए गये है,  सबसे अच्छी बात यह की हरेक हाइकु के साथ उसकी जन्मतिथि और स्थान का भी उल्लेख किया है जो रचनाकार का रचनाकर्म के प्रति गंभीरता को दर्शाता  है ।

इस कृति के हाइकु पर चर्चा करे तो "वंदे चरण " से "कर दो क्षमा " तक 83 विषय पर हइकु इस कृति में है । विनम्र भाव को अभिव्यक्त करता पहला हाइकु -

वंदे चरण
तुझको समर्पण
श्रद्धा सुमन

सबेरे के दृष्य पर मानवीय स्थिती का वर्णन बहुत अच्छे तरीके से किया है -

मन में नेह
अलसाई सी देह
हुई सुबह

अक्सर कहा जाता है "उम्मीद पर दुनिया टिकी है" यह बात सारिका जी बड़े सलीके से कहती है -

कैसी निराशा
जीवन का अर्थ है
आशा - प्रत्याशा

मन के भावों पर कहती है -

सोचता मन
हो सब कुछ यहॉ
सिर्फ अपना

वर्तमान समय पर वे कहती है -

कैसा विकास
आदमी को आदमी
काटता आज

हो चला अंत
संवेदनाएं शून्य
इच्छा अनंत

फाईल में ही
सिमटी जीवन की
ये रामायण

एक जगह प्रश्न वाचक हाइकु का प्रयोग कुछ नया पन लिए पढ़ने में आया -

बताना कृष्ण
कौन है तुम्हे प्रिय
राधा या मीरा?

विषय की विविधता के बीच पौराणिक पात्रों पर पर केन्द्रित हाइकु भी अपना प्रभाव जमाते नजर आते है -

दुधो नहायी
अपने पिता घर
भटके सीता

सत्य के लिए
दिया राम का साथ
विभीषण ने

वाह रे कृष्ण
खूब रोका तुमने
चीर हरण

आज साहित्य में व्यंग्य हर विधा पर भारी है ऐसे में कोई भी रचनाधर्मी व्यंग्य के बगैर अपनी बात पूरी नही कर पाता है सारिका जी भी राजनीतिक संदर्भ पर कहती है -

यूँ चाल चली
जिसको मिला मौका
कुर्सी खींच ली

संसद मौन
गरीब की व्यथा को
समझे कौन

दर्शन, अध्यात्म, इतिहास  ,भावना, वेदना, संवेदना ,आशा, निराशा, व्यवहार आदी कई मानवीय जीवन और जिज्ञासा के विषयों पर  डॉ सारिका मुकेश ने अपनी कलम चलाई और एक सार्थक प्रयास के रूप में शब्दो के पुल समाज को दिया है जो विचारों के प्रवाह का सुंदर संग्रह है, इस संग्रह के लिए वे बधाई की पात्र है ।
भविष्य के लिए मंगलकामनाओं सहित ...

@समीक्षक
-संदीप सृजन
संपादक - शब्द प्रवाह
उज्जैन (म.प्र.)

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